चुन्नी

ज़िंदगी के कुछ मीठे,कुछ खट्टे कुछ तीखे अनुभव से उपजी बातों को सहेजने का एक अकिंचन सा प्रयास .....!

Monday 8 August 2016

सत्य...!

कहाँ - कहाँ नही ढूंढा तुम्हें
मंदिरों में,मस्जिदों में,गिरजाघरों में
और-और इबादत गाहों में जाकर
पुकारा तुम्हें...!
जोर से आवाज़ दी .....
हर बार मेरी आवाज़
इबादतगाहों के गुम्बदों में गूँजती रही 
दीवारों से टकराती रही
शून्य में विलीन होती रही
किन्तु नही मिला तुम्हारा कोई भी सुराग !
हारकर / थककर
दिल ने पुकारा  तुम्हें मौन स्वर” में
अचरज.....!!!!
इस बार ना तो मेरी आवाज़ कही गूंजी
ना दीवारों से टकराई
और ना ही शून्य में विलीन हुई
बल्कि प्रतिउत्तर में
सुनाई पड़ी तुम्हारी मरियल सी
थर्राथराताती हुईं अनुगुंजित आवाज़
मैंने झाँककर देखा / अपने मन में...!
तुम स्वार्थ के भारी-भरकम  
चट्टान के नीचे दबे/ रिरितते हुये मिले

ओ आदि सत्य .... !! - चुन्नी <3 :) 

Tuesday 2 August 2016

 कविता...
अंतस से फूटती है
झर- झर झरना बनकर/
शब्द-शब्द ! छन्द – छन्द/
हौले – हौले / मंद – मंद –
कभी अनूठा व्दंद बनकर...!
भावनाओं की बाड़ में /
टूटन के आड़ में –
कविता उपजती  है/
आंसुओं में/ मुस्कान में
मजदूरों की थकान में/
कही पर्वतों की ढला
नीले आसमान में !
गीतों में / गज़लों में /
लहलहाती हुई फसलों में !
नदियों में / खतों में / खलिहानों में
कविता का दायरा बहुत बड़ा-
और विशाल है !!
कविता पर कविता /
ये अनुतरित सवाल है !!
जहां जति और वर्ग भेद है  
जहां ईमान के दामन में छेद है !!
सत्य अपाहिज और फेल है/
लूट/ खसोट का घिनौना खेल है  
वहाँ पर कविता तनकर खड़ी हो जाती है !
अनायस सयानी
और बड़ी हो जाती है!!
ये विपरीत हालातो को
ये बेहतर रेट करती है/
प्रेमियों के संग डेट करती है !!
दिल को संवेदनाओं से जोड़ती है /
अंतस की जड़ता को तोड़ती है ...!
कभी ये दबे – कुचले पीड़ितों की
ज़ुबान बन जाती है/
तो कभी शोषको के विरुद्ध
तीर - कमान बन जाती है,
अत्याचारीयों के खिलाफ...
कविता,,,,,,
विष्फोटक सामान बन जाती है !! - चुन्नी <3 :) 


Friday 1 July 2016

अहसास है,,,
भूख से व्यकुल आँखों में
पलते रोटी के सपनों का  !
अहसास है,,, 
एसिड अटैक से झुलसी
किसी मासूम के चितकार के स्वर का  !
अहसास हैं,,,
धूप में झुलसी हुई किसान की
काली त्वचा से बहते हुये पसीने की गंध का  !
अहसास है,,,  
सरहद पर घायल जावन की
देह से रिसते  हुआ लहू का !
अहसास है,,,
भूखे भेड़ियों व्दारा असमत लूटी बच्ची के   
क्षत विक्षत देह पर अमानवीय बरबरता के  
इंसानित को शर्मसार करने वाला
हृदय विदारक दृश्य का !
अहसास है,,,
सियाचीन की बर्फीली पहाड़ियों
में सरहद के पहरी के आईसबर्न से
गली हुई अंगुलियों से उठती हुई टीस का !
अहसास है,,,,
अपने बेटे / बहू से पिटती
बुढ़ी असाहय माँ के
झुर्री वाले गालो पर बहते आंसुओं में
लिपटी अनकही पीड़ा के मौन स्वर का  !
अहसास है,,,
गोली खाकर जमीन पर गिरते
बूढ़े महत्मा के मुंख से
प्रस्फुटित अंतिम शब्द “हे राम ” का !
अहसास है,,,
दीवार पर जिंदा चुनवा दिये गये
सिख्खधर्म गुरु के मासूम बेटों के
रुदन के स्वर का  !
अहसास है,,,
सलीब पर काँटों का ताज
पहना कर लटका दिये गये
जीजस की आखरी बात का  
“हे ईश्वर ! इन्हें माफ करना
ये नही जानते की-
ये क्या कर रहे है ”...!
दाता !
अहसास बहुत गहरा है
लेकिन,,,,,
तू ही बता कैसे माफ करे

हम इंसान हैं / देवता नही !! – भावुक चुन्नी 

Wednesday 22 June 2016

रहने दे ...!





ज़ीस्त है जब तक ये करम रहने दे
अनकहा है जो हमको भी कहने दे !
कुम्हलाये ही सही फिर भी फूल हैं,
कुचल देना पैरों तले भरम रहने दे !
बेसबब , बेअसर ,नाकाम ही सही ,
अहसासों का अनवरत चरम रहने दे !
हर कोना वीरान हैं हालात है बेरहम,
अज़मत होगी थोड़ा वहम रहने दे !
मौसम-ए-दहर में कब्ज़ा है ख़िज़ाँ का,
दिले चमन पर थोड़ा रहम रहने दे !! चुन्नी <3 :)











ज़ीस्त       = जींदगी / जीवन 
मौसम-ए-दहर = दुनियां का मौसम
ख़िज़ाँ       =  पतझड़   

Thursday 9 June 2016

रीड़ की हड्डी से होकर
दौड़ जाती है/ सिहरन ....!!
स्तब्ध बस्ती की वीरान खामोशी में 

कभी- कभी अनायास ही गूंज उठती है,
बूटों के कदमताल की आवाज़ !!
और फिर से पसर जाता है/
मातमी सन्नाटा...!!
क्या घटा है यहाँ ?
निष्ठुर अधेरों के साथ
हवा हाँफने लगी है...!!
हताशा  में डूबी चंदनी
लहरों में कांपने लगी है !
अनायस ही सायरन की आवाज से
भंग हो जाती है मुर्दा शांति/
मुरझाई हुई है
बहुत उदास है
चाँद की कान्ति…!
तार पर बैठी अकेली चिड़िया
बेचैनी से तांक रही है
 इधर उधर
अधजले/गुंगवाते मकानों के भग्नावशेष/
मौत के तांडव की स्याह छाया/
बेतरतीबी से बिखर कर गाड़ा हो चुका
लाला रंग...!!
खौ
फजदा/ घुटी हुई मुर्दानी सिसकियां...!!
जिंदा लाशों  के बीच-
कुछ बदरंग व दहशत दा चेहरे /
चलो…! उठो तोडो
इस गहन हताशा को ...
पकड़ लो ...! जकड़ लो ...!!!
कही सूरज….

अस्त ना हो जाये
समूची मानवता  
ध्वस्त न हो जाये...!!!!- प्रेरक चुन्नी 

Saturday 4 June 2016

तोड़ना जरूरी है /
बेहद जरूरी है !
तो तोड़ दिया जाये ...!
यही सबसे आसान है
जो लोग बडी
सहजता से कर लेते है...!
जोड़ना तो सीखा ही नही
क्योकि ये बहुत दुष्कर है
यही तो नही होता...!

               
 भोले तुझसा  
 फक्कड़नपन / सिखलादे
 भोले ...!! बता की कैसे
 हलाहल पिया जाता-
 भला कैसी विष कंठ में धारकर
 जिया जाता है ? – विषपायीचुन्नी <3